संथाल आदिवासी समाज में महिलाओं का स्थान

मानव सभ्यता के इतिहास में आज जितनी भी उपलब्धियां सभी समाज के लेखन का गौरव बढ़ा रही हैं ;इनमें यह निर्विवाद सत्य है किइस सम्पूर्ण परिदृश्य में जितनी भूमिका पुरुषों की रही है उतनी ही महिलाओं की भी है .पाचीन काल में नारी देवी रूप में पूज्या थी तो मध्य काल में वह उपेक्षा का शिकार हुई ..लेकिन ,यह सत्य है कि किसी भी देश के सामजिक निर्माण और उत्थान में नारी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता .जहाँ तक संथाल आदिवासी समाज की बात है तो कुछ पारिवारिक और धार्मिक अनुष्ठानों को छोड़कर सामान्यत: महिलाओं को पुरुषों के समक्ष नहीं माना जाता .
संथाली भाषा में एक वाक्य है — ‘जिनिस काना को ‘अर्थात महिलायें एक प्रकार का सामान हैं ,जिन्हें सामानों की तरह रखा जा सकता है | संथाली समाज के नियमों के अनुसार एक बालिका के रूप में वे अपने पिता के अधीन ,एक पत्नी के रूप में वह अपने पति के अधीन तथा एक विधवा के रूप में वे या तो अपने पति के परिवार की देखरेख में रहती हैं या अपने पिता या पुत्रों के साथ |

इतना ही नहीं ,स्त्रियों के बारे में संथालों में एक और मार्मिक अभिव्यक्ति पचलित है — ‘सौस शामराव हिवाले ‘– अर्थात ,पत्नियां पति की संपत्ति होती हैं .इससे संथाल समाज में स्त्रियों के प्रति चल रही धारणा का पता चलता हैं |
जब तक किसी लड़की की शादी नहीं होती वह पिता के पुरे नियंत्रण में रहती है और उसके पिता समाज में उस के आचरण के सम्बन्ध में पुरी तरह से जवाबदेह माने जाते हैं |अगर किसी लड़की का आचरण संदिग्ध हो तो पिता या अभिभावक के लिए यह चिंतनीय विषय होता है |

संथाल परगना में शेष समाज की तुलना में एक आदर्श परम्परा यह है कि तिलक – दहेज़ जैसी कोई कुप्रथा यहाँ नहीं .अत: अपनी बेटी की शादी हेतु पिता को कोई दहेज़ नहीं जुटाना पड़ता है |बल्कि ,यहाँ कन्या के माता – पिता को ही वर – पक्ष की और से कुछ राशि ‘वधु – मूल्य ‘ के रूप में दी जाती है |इसलिए अपनी पुत्री का आचरण संदिग्ध हो जाने पर माता – पिता को यह अनुभव होता है कि उन्हें शायद वधु – मूल्य प्राप्त नहीं होगा |लेकिन ,अगर कन्या का आचरण संदिग्ध हो जाता है तो गाँव के प्रधान ,जिसे ‘जोग मांझी ‘ कहा जाता है — के निर्देश तथा मध्यस्थता में लड़की के पिता सम्बंधित लडके के माता – पिता से वधु – मूल्य प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं |यह बात अलग है कि किसी प्रकार का शारीरिक सम्बन्ध होने पर सम्बंधित लड़की और लडके की शादी करा देने की बात उन की परम्पराओं से अनुमोदित है |विवाहेत्तर शारीरिक सम्बन्ध के मामले में ‘जोग मांझी ‘ साम्बंधित पुरुष को या उस के माता – पिता को बुला कर आर्थिक दंड देते हैं |सम्बंधित पुरुष /युवक के आचरण को सार्वजनिक कर कभी – कभी उसे जाति से बाहर भी कर दिया जाता है |

संथालों ने प्रकृति से अपना आत्मीय सम्बन्ध बनाए रखा है इसलिए अनेक विद्वानों ने संथालों को प्रकृति का स्वाभाविक मित्र कहा है |संथाल स्त्री हो या पुरुष वे प्रकृति की तरह ही शांत ,दृढ और निश्छल होते हैं |कई देशी – विदेशी विद्वानों ने यह भ्रम प्रचारित किया है कि प्रेम – प्रसंगों में संथाल स्त्रियाँ किसी बंधन को नहीं मानतीं |पर यह बात पूर्णत: सत्य नहीं है|अपनी सामाजिक परम्परा के अनुसार कोई संथाल स्त्री अपने प्रेम का अधिकारी चुन तो सकती है ,लेकिन शालीनता और चरित्र की ऎसी पारदर्शी रेखा उन के बीच खिंची रहती है जिसे किसी भी दृष्टि से अनौचित्य नहीं ठहराया जा सकता है |छोटानागपुर के आदिवासियों में जो ‘धमकुडिया’ नाम की प्रथा है उसे संथाल परगना में कहीं नहीं माना जाता है

 |’धमकुडिया’ प्रथा के अनुसार अविवाहित आदिवासी युवक – युवती किसी भी एकांत जगह पर बातें करने के लिए या एक – दुसरे को जानने – समझाने के लिए स्वच्छंद रूप से मिल सकते हैं |बाद में ये युगल अगर इच्छा हो तो विवाह के बंधन में भी बंध सकते हैं |इसके टीक विपरीत संथाल परगना की संथाल बालाएं अविवाहित युवकों के साथ पशुओं को चराते समय ,जंगलों से फल ,लकड़ी आदि लाते समय ,या हाट से आते – जाते समय बातें तो कर सकती हैं किन्तु एक शिष्ट संकोच की सीमा तक ही |

प्रथम तथा द्वितीय विश्व – युद्ध के समय सड़क तथा हवाई अड्डा बनाने के काम में संथाली युवतियों ने भारी संख्या में मजदुर के रूप में काम किया था |संथाल पुरुष भी अपनी आजीविका के लिए अनेक महीनों तक बंगाल ,उडीसा ,असं आदि प्रदेशों में जाकर काम करते रहे हैं |इस प्रकार ,आजीविका के इस अवश्यम्भावी प्रवासी जीवन ने भी संथालों संथालों के जीवन -क्रम में एक स्वाभाविक परिवर्तन ला दिया तथा इनके जीवन – स्तर में भी गुणात्मक सुधार हुए |

अपनी पारिवारिक परम्परा के अनुसार एक संथाल युवती अपने पति के लिए संतान देने के अलावा परिवार की रोजमर्रा की आवश्यकताओं को भी पूरा करती है |कुछ मामलों में संथाल महिलायें स्वतंत्र भी हैं जैसे वे किस्सी के साथ या किसी के सामने भी अपनी इच्छा से नृत्य कर सकती हैं |साथ ही हाट-बाजार के कामों के अलावा पति की अनुपस्थिति में भी वे अपनी इच्छा से ‘हड़िया’या ‘पोचई’जैसे नशीले पेय का सेवन कर सकती हैं |इसके साथ ही ,बेटे – बेटियों की शादी में पति की अपेक्षा पत्नी की ही बात अंतिम मानी जाती है |यहाँ तक कि ग्राम – सभाओं में भी संथाल महिलायें पुरुषों के समकक्ष अपनी बातें रख सकती हैं |संथाल समाज में महिलाओं को जादू – टोना जानने वाली मोहिनी शक्ति के रूप में भी देखा जाता है |संथाल महिलायें खेती के लिए खाद – बीज की व्यवस्था करने से लेकर घर की जरूरतों के लिए व्यपारियों से कर्ज लेने तथा फसल कट जाने पर चुकाने तक की सारी जिम्मेवारी निभाती हैं |

पम्परा के अनुसार संथाल पुरुषों एवं महिलाओं में रोज के कामों की स्पष्ट विभाजक रेखाएं खिंची हुई हैं |खेतों मे हल चलाना ,घर की छत मरम्मत करना ,तीर – धनिश चलाना या बंसी की सहायता से मछली पकड़ना जैसे काम पुरुषों के लिए ही निर्धारित हैं |इसी प्रकार ढोल ,मांदर या डुगडुगी बजाना भी महिलाओं के लिए अनुपयुक्त माना जाता है |देवी – देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की दी जाने वाली बलि तथा मंदिरों के गर्भ – गृह ,जहां ऎसी बलि – पूजा की जाती है — में भी महिलाओं की उपस्थिति वर्जित होती है |बलि का प्रसाद कुंवारी लड़कियां तभी ग्रहण कर सकती हैं जबकि उसमें सर का हिस्सा नहीं होता है |विवाह से पूर्व कुंवारी लड़कियों द्वारा अर्जित धन परिवार के मुखिया की संपत्ति मानी जाती है,लेकिन कुछ संपत्ति ऎसी होती है जिस पर केवल लड़कियों का ही अधिकार होता है |जैसे कटी फसल का पहला गट्ठर या ननिहाल से पशु के रूप में प्राप्त उपहार आदि |

संथाली प्रथा के मुताबिक़ यदि कोई अविवाहित संथाल युवक किसी अविवाहित संथाल कन्या पर कोई चारित्रिक लांछन लगाता है तो उस कन्या को अधिकार है कि वह उस युवक से एक निश्चित धन – राशि अर्थ – दंड के रूप में ले सके |इस दंड को संथाली में ‘लाजाओ माराव ‘कहते हैं |लेकिन विवाहोपरांत संथाल युवती के अधिकार दो प्रकार के हो जाते हैं — एक तो जिस व्यक्ति की वह पत्नी है उस की संपत्ति में तथा दूसरे मायके में भी बेटी के रूप में उस के अधिकार स्य्रक्षित रहते हैं |

संथालों में विवाह अर्थात ‘बापला ‘ महिलाओं के लिए अत्यंत पवित्र बंधन माना जाता है इसे सिर्फ शारीरिक सम्बन्धों की सीमा नहीं बल्कि धार्मिक सम्बन्ध मानते हैं क्योंकि शादी के माध्यम से प्रत्येक कन्या को नए देवता भी प्रदान किये जाते हैं |यद्यपि ,परम्परा के अनुसार संथाल पुरुष एक से अधिक पत्नी रख सकते हैं ,परन्तु उनकी पारिवारिक और सामाजिक परम्परा में प्रथम पत्नी का स्थान ही सर्वोपरि माना जाता है |


Source : PRATILIPI.com

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